बिहार-गया के नक्सल इलाके के पुलिस वाले बने शिक्षक, थाना को बना दिया पाठशाला

admin
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गया.

नक्सल इलाके के बच्चों के बीच खाकी वाले अक्षर ज्ञान बांट रहे हैं। अशिक्षित बच्चों को शिक्षित करने के लिए थाना को ही पाठशाला बना दिया। उक्त पाठशाला में नक्सल प्रभावित इलाकों के दर्जनों गांव के बच्चे अक्षर ज्ञान की तालीम पा रहे हैं। वहीं शिक्षक की भूमिका पुलिस वाले निभा रहे हैं। यह पूरा मामला नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित गया जिले के छकरबंधा थाना की है। जहां थाना प्रभारी अजय बहादुर सिंह शिक्षक की भूमिका निभा रहे।

बताया जा रहा है कि गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल क्षेत्र के छकरबंधा थाने में अनोखी पहल की गई है। थाने में पुलिस अपना कार्य के साथ साथ पाठशाला भी संचालित कर रखे है। जहां नक्सल प्रभावित इलाकों के दर्जनों गांव के अशिक्षित बच्चों के बीच पुलिस वाले शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। वहीं बच्चों के बीच शिक्षा के साथ साथ नैतिक शिक्षा भी दिया जा रहा है। नक्सल इलाकों के बच्चे देश के अच्छे नागरिक बन सके। मामले में छकरबंधा थानाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह ने कहा कि नक्सल प्रभावित इलाकों के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष अभियान के तहत और विस्तार करने की योजना बनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों को न केवल प्राथमिक शिक्षा दी जाए, बल्कि कंप्यूटर और अन्य तकनीकी शिक्षा भी मुहैया कराए, ताकि आने वाले भविष्य में कई अवसरों का भी लाभ उठा सकें।

होगी लाइब्रेरी का स्थापना
वहीं उन्होंने बताया कि बच्चों की आवश्यकता और जरुरतों को देखते हुए, शीघ्र ही थाने में लाइब्रेरी का स्थापना किया जाएगा। जल्द ही गया के सीनियर एसपी आशीष भारती के नेतृत्व में लाइब्रेरी का उद्घाटन कराया जाएगा। थानाध्यक्ष ने कहा मेरी इच्छा है कि हमारे क्षेत्र के बच्चे भी बड़े-बड़े सपने देखे, लेकिन यह संभव सिर्फ शिक्षा से ही पूरी हो सकती है।

वर्दी देख डर जाते थे बच्चे
वहीं छकरबंधा थानाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह ने कहा कि जब हम इस थाना में आए थे और गांवों में घुमते थे, तब बच्चे हमे वर्दी में देख कर डर जाते थे। कुछ दिनों के बाद बच्चों को थाने में पढ़ाने लगा। आज बच्चे डरते नहीं है, बल्कि एक दोस्त की तरह देखते हैं। मेरी इच्छा है कि ये बच्चे बेहतर भविष्य की ओर बढ़े। देश का एक अच्छा नागरिक बने। यह सब शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकता है। इसी उद्देश्य से इस कार्य को कर रहे है। उन्होंने बताया कि शुरुआत दौर में मात्र 15 बच्चे ही पढ़ने आते थे। लेकिन धीरे-धीरे आज 450 बच्चे थाने में शिक्षा ग्रहण करने आते है।

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