खैरागढ़
छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन से जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. इसके कारण पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं, जो चिंता का विषय है. प्रदेश के कई इलाकों में सारस पक्षी आम तौर पर देखने को मिल जाता था, लेकिन अब इसका केवल एक ही जोड़ा रह गया है. इसे लेकर शोध भी किया गया, जिसमें सारस को लेकर कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
पूरे छत्तीसगढ़ में केवल सारस क्रेन का एक ही जोड़ा रह गया, जो सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक में रहता है. प्रदेश में सारस पक्षी विलुप्त होने के कगार पर आ गए हैं, जो हमारी प्रकृति के प्रति जागरूकता और जिम्मेदारियों पर सवाल खड़ा करता है.
यूं तो सरगुजा में करीब 255 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां मिलती हैं. लेकिन इनमें सारस क्रेन का खास महत्व है, और वो इसलिए क्योंकि यह आर्द्रभूमि (तालाबों और जलस्रोतों) के स्वास्थ्य का संकेतक होता है. प्रदेश में 20 साल पहले सारस पक्षी की संख्या 8 से 10 जोड़े यानी तकरीबन 20 पक्षी थे. वहीं साल 2015 में यह संख्या घटकर 4 जोड़े यानी 8 रह गई और आज केवल 1 ही जोड़ा बचा है. इनकी घटती संख्या दर्शाती है कि आसपास के पर्यावरण में गड़बड़ी है.
अनादि काल से सरास का है महत्व
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः, यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्।
जिसका मतलब है कि हे शिकारी, तू अनंत काल तक प्रतिष्ठा न पाए, क्योंकि तूने काममग्न सारस पक्षी के जोड़े में से एक को मारा है. कहा जाता है कि इसी श्लोक से प्रेरित होकर महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की थी. इसलिए सारस पक्षी का महत्व अनादि काल से है.
सारस पक्षी को लेकर शोध
छत्तीसगढ़ में सारस को लेकर प्रतीक ठाकुर, ए एम के भरोस, डॉ हिमांशु गुप्ता और रवि नायडू ने शोध किया, जिसमें कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. शोध किया तो पता चला कि सारस का यह जोड़ा बीते कई वर्षों से लखनपुर के जमगला और तराजू वॉटर टैंक के आसपास देखा जा रहा है. साल 2022 में इनके दो चूजे हुए थे, जिससे उम्मीद जगी थी कि इनकी संख्या फिर से बढ़ने लगेगी. लेकिन दिसंबर 2023 में एक चूजे को जंगली जानवर ने मार दिया.
शोध के मुताबिक, सारस एक समय में दो ही बच्चे पैदा करते हैं, जिनमे से एक वयस्क होने से पहले ही मर जाता है और दूसरा चूजा ही वयस्क हो पता है. वह उड़ने की कला के साथ अपने माता-पिता से जीवन के जरूरी हुनर सीखता है. हालांकि, हाल ही में वह भी लापता है और संभवतः अपने जीवनसाथी की तलाश में है. इस जोड़े का मुख्य निवास लखनपुर है, लेकिन भोजन की तलाश में यह आसपास के खेतों, छोटे तालाबों और रीहंद नदी के किनारे तक जाता है.
सारस पक्षियों के लिए समस्या
सारस के आखिरी जोड़े के सामने कई समस्याएं हैं. जैसे तालाबों में मछली पकड़ने की बढ़ती गतिविधियां, जालों से इनके घोंसलों को खतरा होता है. खेतों में जहरीले रसायनों का इस्तेमाल, इनके भोजन में जहर मिला सकता है. आवारा कुत्तों का हमला, चूजों के लिए सबसे बड़ा खतरा है. इसके अलावा अवैध रेत खनन से भी इनके प्राकृतिक आवास खत्म हो रहे हैं. हालांकि प्रशासन और पर्यावरण रक्षक सारस को बचाने के लिए पोस्टर लगाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं.
पहली बार देखा गया शिकारी पक्षी
बिलासपुर के सीपत डेम और सरगुजा के तराजू गांव में पहली बार पूर्वी मार्श हैरियर नामक शिकारी पक्षी को देखा गया. मुख्य तौर पर यह पक्षी एशिया के कुछ हिस्सों में मिलता है, छत्तीसगढ़ में यह पहले कभी नहीं देखा गया था. यह संकेत है कि अगर जलस्रोत बेहतर होंगे तो प्रदेश में अन्य दुर्लभ प्रजातियां भी लौट सकती हैं.