राजस्थान-भीलवाड़ा में संत मायाराम ने किया नोट बुक का विमोचन, ‘सिन्धी भाषा हमारी पहचान, इसे संरक्षित रखना जिम्मेदारी है’

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भीलवाड़ा.

हरि सेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर में राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद द्वारा प्रकाशित विशेष नोट बुक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर समाज के प्रतिष्ठित संत और गणमान्य लोगों की उपस्थिति में सिन्धी भाषा के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए इस पहल की सराहना की गई। कार्यक्रम में संत मायाराम जी, भारतीय सिन्धु सभा के कोटा संभाग प्रभारी जय चंचलानी और भीलवाड़ा संभाग प्रभारी वीरुमल पुरसानी ने संयुक्त रूप से नोट बुक का विमोचन किया।

इस दौरान समाज के वरिष्ठ सदस्यों ने सिन्धी भाषा और संस्कृति के उत्थान के प्रति अपने विचार व्यक्त किए। हरि सेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर में राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद द्वारा प्रकाशित विशेष नोट बुक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर समाज के प्रतिष्ठित संत और गणमान्य लोगों ने सिन्धी भाषा के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए इस पहल की सराहना की। कार्यक्रम में संत मायाराम जी, भारतीय सिन्धु सभा के कोटा संभाग प्रभारी जय चंचलानी और भीलवाड़ा संभाग प्रभारी वीरुमल पुरसानी ने संयुक्त रूप से नोट बुक का विमोचन किया। इस दौरान समाज के वरिष्ठ सदस्यों ने सिन्धी भाषा और संस्कृति के उत्थान के प्रति अपने विचार व्यक्त किए। सभा के कोषाध्यक्ष ओमप्रकाश गुलाबानी ने जानकारी दी कि यह नोट बुक राजस्थान में संचालित सिन्धी भाषा अधिगम केंद्रों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को नि:शुल्क वितरित की जाएगी। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को सिन्धी भाषा के प्रति जागरूक करना और उन्हें इसे सीखने के लिए प्रेरित करना है। कार्यक्रम में अखिलेश व्यास, मोहनलाल शर्मा, रोमा नोतानी, अनीता चंचलानी, डॉ. रूपा पारीक, उमा वैष्णव, और निशि डोड़वानी सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। सभी ने इस प्रयास की सराहना की और इसे सिन्धी भाषा के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद का यह कदम आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का माध्यम है। कार्यक्रम में अधिगम केंद्रों की संख्या बढ़ाने, शिक्षकों को प्रोत्साहित करने, और पाठ्य सामग्री को और अधिक आकर्षक बनाने की योजना बनाई गई। कार्यक्रम के अंत में  संत मायाराम जी ने कहा कि भाषा हमारी पहचान है और इसे संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। कार्यक्रम में उपस्थित संतों और गणमान्य व्यक्तियों ने समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए आगे आएं।

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